Rajasthan Khatu Shyam Temple
बाबा खाटू श्याम: हारे का सहारा और कलयुग के आराध्य
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय मंदिरों में से एक है। इसे कलयुग के सबसे मान्य देवताओं में से एक माना जाता है। खाटू गांव में स्थित यह पवित्र मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और विश्वास का केंद्र है।
हारे का सहारा
श्याम बाबा को “हारे का सहारा” कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि यहां आने वाला हर भक्त अपनी समस्याओं से छुटकारा पाता है। चाहे कितनी भी कठिनाई हो, इस मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त निराश नहीं लौटता। यही वजह है कि खाटू श्याम जी को “लखदातार” के नाम से भी जाना जाता है।
कलयुग में कृष्ण का अवतार
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, खाटू श्याम को भगवान श्रीकृष्ण का कलयुग में अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्याम बाबा का असली नाम बर्बरीक था, जो महाभारत के महान योद्धा थे। उनकी भक्ति और बलिदान के कारण श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में वे उनके नाम से पूजे जाएंगे।
खाटू श्याम मंदिर की विशेषता
यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी वास्तुकला और भव्यता भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। हर साल लाखों श्रद्धालु खाटू श्याम जी के दर्शन करने आते हैं, विशेष रूप से फाल्गुन माह में आयोजित खाटू श्याम मेले के दौरान।
आइए, आज हम आपको खाटू श्याम मंदिर की महिमा और उससे जुड़ी कुछ रोचक बातें जानने का अवसर प्रदान करते हैं।
वनवास के दौरान, जब पांडव विपत्तियों से बचने के लिए जंगलों में भटक रहे थे, उस समय भीम का सामना राक्षसी हिडिंबा से हुआ। हिडिंबा ने भीम से विवाह किया और उनके पुत्र का जन्म हुआ, जिसे घटोत्कच के नाम से जाना गया। घटोत्कच अपनी अद्वितीय वीरता और अपार शक्तियों के लिए प्रसिद्ध हुआ।
घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक भी अपनी बहादुरी, तपस्या और बलिदान के लिए जाने गए। बर्बरीक की गाथा महाभारत से जुड़ी हुई है और वे खाटू श्याम जी के रूप में पूजे जाते हैं।
महाभारत के युद्ध से पहले, जब कौरवों और पांडवों के बीच संघर्ष तय हो गया था, बर्बरीक ने यह निर्णय लिया कि वे युद्ध को अपनी आंखों से देखेंगे। जब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि वे युद्ध में किस पक्ष का साथ देंगे, तो बर्बरीक ने कहा कि वे हमेशा उस पक्ष का समर्थन करेंगे जो हार रहा होगा।
श्रीकृष्ण, जो भविष्य में होने वाले युद्ध का परिणाम जानते थे, इस बात को लेकर चिंतित थे कि बर्बरीक का निर्णय पांडवों के खिलाफ न चला जाए। इसलिए उन्होंने बर्बरीक को रोकने के लिए उनसे दान मांगने का निर्णय लिया। दान में उन्होंने बर्बरीक का शीश (सिर) मांग लिया। बर्बरीक ने अपनी सहमति देते हुए अपने शीश का दान दे दिया, लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ण से यह इच्छा जताई कि वे अपने सिर के माध्यम से पूरा युद्ध देख सकें।
श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा स्वीकार कर ली और बर्बरीक के सिर को युद्ध स्थल के पास एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया। युद्ध के बाद, जब पांडव इस बात पर बहस करने लगे कि विजय का श्रेय किसे जाता है, तो बर्बरीक ने कहा कि यह विजय केवल श्रीकृष्ण की रणनीति और शक्ति के कारण संभव हुई है।
बर्बरीक के इस महान बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में वे “श्याम” के नाम से पूजे जाएंगे। तभी से बर्बरीक को खाटू श्याम के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है।
कैसे हुआ बाबा खाटू श्याम के मंदिर का निर्माण
एक प्राचीन मान्यता के अनुसार, खाटू श्याम जी का शीश राजस्थान के खाटू गांव में कलयुग के समय मिला था। कहा जाता है कि यह अद्भुत घटना तब घटी जब एक गाय उस स्थान पर खड़ी होकर अपने आप दूध बहाने लगी। इस चमत्कार को देखने के बाद, उस स्थान को खोदा गया, और वहां से बाबा खाटू श्याम का शीश प्राप्त हुआ।
शीश मिलने के बाद लोगों के बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि इसे किसके पास रखा जाए और इसका क्या किया जाए। विचार-विमर्श के बाद, सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि इसे एक पुजारी को सौंप दिया जाए। उसी समय, क्षेत्र के तत्कालीन शासक रूप सिंह चौहान को एक स्वप्न में खाटू श्याम जी के मंदिर निर्माण का आदेश प्राप्त हुआ। इसके बाद शासक रूप सिंह चौहान ने मंदिर निर्माण करवाया और वहां खाटू श्याम जी की मूर्ति को स्थापित किया गया।
हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा
यह विश्वास है कि खाटू श्याम जी का मंदिर हर उस भक्त की मनोकामना पूरी करता है, जो अपनी समस्याएं और कष्ट लेकर वहां जाता है। बाबा श्याम अपने भक्तों की सभी परेशानियों का समाधान करते हैं। यही कारण है कि भक्त उन्हें स्नेह और श्रद्धा से “हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा” कहकर पुकारते हैं। उनकी कृपा से भक्तों को सुख और शांति की प्राप्ति होती है।